यदि हम अपने और भगवान के बीच के दिव्य संबंध को वास्तविक रूप में समझ जाएँ—कि 'मैं भगवान का अंश हूँ, और जो कुछ भी मैं खोज रहा हूँ, वह स्वार्थपूर्ति से नहीं बल्कि भगवान की सेवा से प्राप्त होगा'—तब हम शुद्ध मंशा के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं।

यदि हम अपने और भगवान के बीच के दिव्य संबंध को वास्तविक रूप में समझ जाएँ—कि 'मैं भगवान का अंश हूँ, और जो कुछ भी मैं खोज रहा हूँ, वह स्वार्थपूर्ति से नहीं बल्कि भगवान की सेवा से प्राप्त होगा'—तब हम शुद्ध मंशा के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं।

7 Mindsets for Success, Happiness and Fulfilment04 Aug 2025