गोपियों की प्रेम परीक्षा । गोपी गीत 5/7
42 Min•Gopi Geet
अपनी बातों से गोपियों को मक्खन लगाने वाले माखनचोर। यहां गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में विव्हल और विभोर हैं। वह श्रीकृष्ण से मन ही मन शिकायत करतीं हैं कि पहले तो आप ने अपने व्यवहार और चिकनी चुपड़ी बातों से हमारे चित्त को चुरा लिया। फिर हम सभी को वन में अकेला छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए। गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में अनुभव हो रही व्याकुलता और मिलन की लालसा को अपने प्रेम भरे भावों में व्यक्त कर रहीं हैं। क्योंकि गोपियों ने निष्काम भक्ति का प्रतिपादन किया, वह इस विरह गान के माध्यम से हमें यह शिक्षा दे रहीं हैं कि वास्तविक प्रेम प्रियतम के सुख के लिए ही किया जाता है। वहीं, हम संसार में अपने सुख के लिए दूसरे व्यक्ति से प्रेम करते हैं या उनसे संबंध जोड़ते हैं। जबकि आध्यात्मिक क्षेत्र में अपने सुख का परित्याग करने का ज्ञान मिलता है। क्योंकि श्रीकृष्ण ही हमारे सनातन संबंधी हैं इसीलिए हमें अपने सारें संबंध उनसे ही जोड़ने हैं। क्या है दिव्य प्रेम की परिभाषा ? कैसा अनुभव होता है श्रीकृष्ण से विरह? कौन है जीव का वास्तविक संबंधी? क्या है माधुर्य भाव की भक्ति?
