भक्ति, प्रेम और समर्पण: पार्वती और शिव विवाह कथा । रामायण 5/38
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इस प्रसंग में स्वामी मुकुंदानंद जी माता पार्वती की निःस्वार्थ भक्ति का वर्णन करते हैं और बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपने पिता राजा हिमवान और माता मैना देवी के विरोध के बावजूद भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प को अडिग रखा।
जब भगवान शिव विवाह के लिए आए, तो उनके सिर पर साँपों का मुकुट था, कानों में साँपों के कुंडल थे, और उनका पूरा शरीर भस्म से लिपटा हुआ था। उनके कंठ में विष था और गले में खोपड़ियों की माला। उनकी बारात भी पारंपरिक रूप से दूल्हे के अनुरूप नहीं थी।
यह दृश्य देखकर माता पार्वती के माता-पिता व्याकुल हो उठे, लेकिन माता पार्वती ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि जो ईश्वर की इच्छा से निर्धारित हुआ है, उसे बदला नहीं जा सकता।
