ईश्वर का साकार अवतार और उसकी लीला का मर्म । रामायण 9/38
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रावण राम से पहले रामायण में आता है। उसने घोर तपस्या करके अपार शक्ति प्राप्त की और अमरता का वरदान मांग लिया। फिर वह अहंकार में चूर होकर देवताओं, ऋषियों और सम्पूर्ण जगत को आतंकित करने लगा। यज्ञों को नष्ट कर दिया गया, वेद-पुराणों का पाठ करने वालों को डराकर भगा दिया गया। चारों ओर अधर्म फैल गया और धर्म की कोई बात सुनाई नहीं देती थी।
जब हम भगवान को पुकारते हैं, तो स्थान नहीं, बल्कि हमारी प्रार्थना की सच्चाई और प्रेम मायने रखता है। भगवान उसी रूप में प्रकट होते हैं, जितना प्रेम और भक्ति हमारे हृदय में होती है।
जब प्रेम से भगवान को पुकारा जाता है, तो वे अवश्य प्रकट होते हैं – स्थान या विधि की परवाह नहीं होती, भक्ति और प्रेम ही सच्चा माध्यम है।
