भगवान की सेवा कैसी होनी चाहिए? गोपी गीत 4/7

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गोपी गीत के इस चौथे भाग में स्वामी मुकुन्दानन्द जी श्रीकृष्ण की मोहिनी छवि के बारे में वर्णन कर रहे हैं। पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण जीवों के चित्त को चुराने में माहिर हैं। उन्होंने ब्रज में रहते हुए सभी गोपियों को अपना ऐसा दीवाना बनाया, जिससे उन्हें लगने लग गया कि श्यामसुंदर तो उनपर लट्टू हो गए। वह गोपियों से ऐसे व्यवहार करते थे कि गोपियाँ अष्टयाम केवल श्रीकृष्ण का ही स्मरण करतीं थीं। सबसे अनोखी बात यह थी कि श्रीकृष्ण अपनी छवि के साथ साथ ऐसी मधुर वाणी में उनसे बात करते थे कि गोपियाँ अपनी सुधबुध ही गँवा देतीं थीं। इस गोपी गीत में गोपियों के दिव्य प्रेम की गहराई और श्रीकृष्ण से मिलन की व्याकुलता की स्थिति के दर्शन होते हैं कि आखिर प्रियतम के सुख के लिए आप कैसे स्वयं को न्योछावर करते हैं। श्रीकृष्ण महारास से क्यों अंतर्ध्यान हो गए थे? महारास से अंतर्ध्यान होने के बाद श्रीकृष्ण के साथ कौनसी गोपी उनके साथ थी? क्या महादेव गोपी का रूप धारण कर पहुँचे थे महारास में ? वास्तव में कैसा दिखता है श्रीकृष्ण के शरीर का नील वर्ण?