भक्ति का मूल मंत्र - पूर्ण समर्पण । रामायण 2/38

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स्वामीजी इस प्रसंग में एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात समझाते हैं कि सबसे बड़ा अपराधी भी 'करुणा निधान' दयालु भगवान श्रीराम के चरणों में आकर अपने पापों से मुक्त हो सकता है। चाहे वह राजा हो, राक्षस हो या वानरराज सुग्रीव, पूर्ण समर्पण के द्वारा वे जन्म और मृत्यु के चक्र से पार हो सकते हैं। लेकिन हम भगवान में 100 प्रतिशत विश्वास नहीं रखते, यही कारण है कि हम भगवान को प्राप्त नहीं कर पाते। शंका (संशय) मानव स्वभाव का एक हिस्सा है। एक ओर हम भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं और दूसरी ओर संदेह करते हैं कि वे भगवान थे या नहीं। यदि वे भगवान थे तो उन्हें यह क्यों नहीं पता था कि सीता कहाँ हैं? उन्होंने बाली को पेड़ के पीछे से क्यों मारा? उन्होंने माता सीता का परित्याग क्यों किया? स्वामीजी कहते हैं कि यह मानवीय प्रवृत्ति—शंका करना—आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। हम एक कदम आगे बढ़ते हैं और दो कदम पीछे हटते हैं, जिससे हम वहीं के वहीं रह जाते हैं। पूर्ण समर्पण ही इसका समाधान है। हम भगवान श्रीराम की पूजा भी करते हैं और उनमें दोष भी खोजते हैं, क्या ऐसा नहीं है? अपने संदेह दूर करने के लिए पूरी चर्चा को ध्यान से सुनें।
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भक्ति का मूल मंत्र - पूर्ण समर्पण । रामायण 2/38

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जब संशय ने माता सती को शंकर जी से दूर कर दिया । रामायण 4/38

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भक्ति, प्रेम और समर्पण: पार्वती और शिव विवाह कथा । रामायण 5/38

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भगवान राम का अवतरण क्यों हुआ? । रामायण 10/38

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रामजन्म के बाद... न सूर्य ढला, न शंकर जी रुके! रामायण 11/38

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जब वशिष्ठ और विश्वामित्र में हुआ द्वंद्व । रामायण 12/38

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ताड़का वध से लेकर सीता स्वयंवर तक की यात्रा । रामायण 13/38

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ब्रह्मज्ञानी जनक क्यों बहक गए राम के प्रेम में? रामायण 14/38

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राम सीता प्रथम मिलन । रामायण 15/38

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मंथरा की चाल, कैकयी का पतन । रामायण 19/38

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राम का वनवास: सीता और लक्ष्मण का दृढ़ संकल्प । रामायण 20/38

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केवट संवाद: प्रभु श्रीराम के चरणों की महिमा । रामायण 22/38

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जब मिले श्रीराम और हनुमान - क्यों नहीं पहचान पाए |  रामायण 31/38

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जब सुग्रीव ने बाँधना चाहा विभीषण को, पर भगवान राम ने लगा लिया गले से | रामायण 35/38

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