भक्ति का मूल मंत्र - पूर्ण समर्पण । रामायण 2/38
11 Min•Ramayan
स्वामीजी इस प्रसंग में एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात समझाते हैं कि सबसे बड़ा अपराधी भी 'करुणा निधान' दयालु भगवान श्रीराम के चरणों में आकर अपने पापों से मुक्त हो सकता है। चाहे वह राजा हो, राक्षस हो या वानरराज सुग्रीव, पूर्ण समर्पण के द्वारा वे जन्म और मृत्यु के चक्र से पार हो सकते हैं। लेकिन हम भगवान में 100 प्रतिशत विश्वास नहीं रखते, यही कारण है कि हम भगवान को प्राप्त नहीं कर पाते।
शंका (संशय) मानव स्वभाव का एक हिस्सा है। एक ओर हम भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं और दूसरी ओर संदेह करते हैं कि वे भगवान थे या नहीं। यदि वे भगवान थे तो उन्हें यह क्यों नहीं पता था कि सीता कहाँ हैं? उन्होंने बाली को पेड़ के पीछे से क्यों मारा? उन्होंने माता सीता का परित्याग क्यों किया? स्वामीजी कहते हैं कि यह मानवीय प्रवृत्ति—शंका करना—आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। हम एक कदम आगे बढ़ते हैं और दो कदम पीछे हटते हैं, जिससे हम वहीं के वहीं रह जाते हैं। पूर्ण समर्पण ही इसका समाधान है।
हम भगवान श्रीराम की पूजा भी करते हैं और उनमें दोष भी खोजते हैं, क्या ऐसा नहीं है? अपने संदेह दूर करने के लिए पूरी चर्चा को ध्यान से सुनें।
