मनुष्य का लक्ष्य । श्रीमद् भागवत कथा 4/7

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इस श्रीमद्भागवत महापुराण व्याख्यान श्रृंखला की चौथी कड़ी में, स्वामी मुकुन्दानन्द, मानव शरीर का महत्त्व को विभिन्न आख्यानों तथा कथाओं के माध्यम से पुष्ट करते हैं। स्वामीजी बतातें है की जीवन मुक्त होने पर भी अंतकाल में हिरनी के बच्चे में आसक्त होनेके कारण भरत को दूसरा जन्म (जड़भरत) लेना पड़ा, उसकी मुक्ति नहीं हुई । इसलिए जन साधारण को माया के इस संसार में सतर्क हो अपनी ईस्वरीय साधना करनी चाहिए और देव दुर्लव मानव शरीर का उपयोग करते हुए नित्य भगवान में मन को लगाए रहना चाहिए। नाम महिमा को सिद्ध करने के लिए भागवत के अजामिल प्रसंग को स्वामीजी ने बड़ेही रोचक और इस्पष्ट के साथ बताया है , जिसमें कैसे अंतिम समय में अपने पुत्र नारायण को पुकारा, नारायण नाम के प्रवाभ के करण विष्णुदूतों और यमदूतों के बिच वादविवाद, सत्संग के प्रवाभ से अजामिल को आपने पाप माया जीवन शैली का वोध होना और भक्ति से अजामिल का उद्धार होना। इस भाग में स्वामीजी ने, भारतवर्ष नाम का इतिहास , विभिन्न लोकोका वर्णन, राजा चित्रकेतु का सन्तान हीन होने पर शोक करना इत्यादि रोचक तथ्योँ पर प्रकाश डाला हैं। स्वामीजी द्वारा भारत के विभिन्न राज्यों में ऑक्टूबर से मार्च अनेक कार्यकर्मो जैसे कि, आध्यात्मिक प्रवचन शृंख्ला, भक्तियोग साधना शिविर, योग शिविर, इत्यादि का आयोजन किया जाता है | आप सभी कार्यकर्मो की अधिक जानकारी हमारे वेबसाइट से प्राप्त कर सकते है।