लंका में राम भक्त । Golden Rules 10/21
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रामभक्त हनुमान के संग का प्रभाव लंका के दो व्यक्तियों पर कैसे पड़ा इसकी कथा कुछ ऐसी है कि जब हनुमान जी समुद्र पार करके रात में लंका नगरी पहुंचे तो महल के अंदर प्रवेश करते समय लंकिनी नाम की राक्षसी, जो लंका की पहरेदार थी, ने उन्हें चोर कहकर रोका। हनुमान जी ने गुस्से में उसे एक घूंसा मार करके कहा मुझे चोर बोल रही है? अरे, सबसे बड़ा चोर तो अंदर है, जिसने जगत जननी की चोरी की। लंकिनी हनुमानजी के वार से मूर्छित हो गई, जब होश आया तो उन्हें प्रणाम कर कहा कि ब्रह्मा जी ने मुझे कहा था कि यह नगरी खूब फलेगी फूलेगी। लेकिन जब एक वानर आकर मुझे मारेगा तब समझ लेना की इस नगरी के अंतिम दिन निकट आ गए हैं। वहां से हनुमानजी नगरी के भीतर गए और देखा सब रक्षा भोग कर रहे हैं और रावण मंदोदरी के साथ विश्राम कर रहा है। फिर उन्हें एक विशेष घर दिखाई दिया जिसके बाहर तुलसी उग रही थी और भगवान श्रीराम के धनुष 'सारंग' का चिह्न था। उस समय सुबह के 3 बजे थे और विभीषण राम राम करके उठा और बाहर आया। बाहर हनुमानजी के दर्शन कर अति प्रसन्न हुआ। फिर उन्होंने कहा कि मैं कितने समय से राम का नाम ले रहा हूँ लेकिन उनकी कृपा प्रत्यक्ष रूप से नहीं हुई। हनुमानजी ने उत्तर में कहा वह इसीलिए क्योंकि तुमने रामकाज नहीं किया। स्वामी मुकुन्दानन्द गोल्डन रूल के अंतर्गत इस एपिसोड में जीवन में सत्संग के महत्व के बारे में बात करते हैं। और स्वामीजी ने अपने स्वयं के 40 साल के अनुभव को साझा कर कहा है कि जिन लोगों ने जेकेयोग के डेली सत्संग में भाग लिया उनका जीवन 1 वर्ष के भीतर पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया और दिशा भगवन्मय हो गई।
