दूसरों पर नहीं स्वयं पर ध्यान दें।
13 Min•Thoughts
हमारे विचार ही भविष्य में कर्म बनते हैं, वो कर्म आदतों में बदलती हैं, आदतें अपने स्वभाव का हिस्सा बन जाता हैं, और मनुष्य का स्वभाव ही उसके चरित्र का गठन करता है। और ये सब हमारे सोचने मात्र से सम्भव हो जाता है। कोई भी व्यक्ति एक ही दिन में कलाकार, विद्वान अथवा राक्षस नहीं बन जाता। अपने विचारों के आधारित हम स्वयं अपने भविष्य का निर्माण करते रहते हैं। जब इस के दुष्परिणाम भोगने का समय आता है, हम भगवान, भाग्य, संसार के जन आदि को दोष दे बैठते हैं। इस प्रवचन के माध्यम से स्वामीजी इस अमूल्य ज्ञानमय दृष्टिकोण को समझा रहे हैं कि कैसे हमें दूसरों के बारे मे सोचने के बजाय खुद के जीवन के पथ पर किस प्रकार से ध्यान दें? बस इस एक शक्ति को हासिल कर लेने से जीवन भर हमें अब कोई अन्य पुस्तक पढ़ने व किसी और मार्ग पर जाकर ठोकर खाने को आवश्यकता नही है । इस शक्ति को हम सब उपयोग में ला सकते हैं।
