भगवान का विधान | शरणागति का रहस्य - 4/28

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नियम सर्वत्र है। जैसे शरीर का नियम है - ठीक ठीक खाओ, अधिक खाओगे तो बीमार हो जाओगे, कम खाओगे तो बीमार हो जाओगे। जैसे ये तारागण नक्षत्र नियमित गति से चल रहे हैं। उस नियम में थोड़ी सी गड़बड़ी हो गई, तो सब टकराके समाप्त हो जायेंगे। भगवान कहते हैं, मैं भी नियम से ही चलता हूँ , तुमको जब कृपा चाहिए होगी, इस जन्म में, अगले जन्म में, हजार जन्म के बाद, समर्पित हो जाना, मैं कृपा कर दूंगा। भगवान की कृपा पाने हेतु शरणागति अनिवार्य है। इसीलिए शरणागति का तात्पर्य जानना आवश्यक है। शरणागति की आवश्यकता क्योँ है ? उससे किस चीज़ की प्राप्ति होती है ? एवं शरणागत होने का क्या उपाय है ? 'शरणागति का रहस्य' नामक इस नई प्रवचन श्रृंखला में हम इन सब प्रश्नों का उत्तर समझेंगे ।