भगवद् गीता का सार | शरणागति का रहस्य - 13/28
9 Min•Sharanagati
गीता के प्रारम्भ में अर्जुन ने अपने गांडीव को रख दिया और कहा - हे श्रीकृष्ण ! मैं युद्ध नहीं करूँगा। उसने ये भी कहा हे श्रीकृष्ण ! मैं आपका शिष्य हूँ, एवं आपके शरणागत हूँ। आप कृपया मुझे बोध कराइये की मेरा कर्तव्य क्या बनता है ? मुझे करना क्या है ? श्रीकृष्ण ने यहाँ से गीता ज्ञान प्रारम्भ किया।तो शरणागति न अच्छे कर्म का नाम है, न बुरे कर्म का नाम है। शरणागति का अभिप्राय है, कुछ न करना।अब ये कुछ न करने से कृपा होगी।तो कुछ न करने वाली अवस्था आएगी कैसे ?
भगवान की कृपा पाने हेतु शरणागति अनिवार्य है। इसीलिए शरणागति का तात्पर्य जानना आवश्यक है। शरणागति की आवश्यकता क्योँ है ? उससे किस चीज़ की प्राप्ति होती है ? एवं शरणागत होने का क्या उपाय है ? 'शरणागति का रहस्य' नामक इस नई प्रवचन श्रृंखला में हम इन सब प्रश्नों का उत्तर समझेंगे ।
